कहाँ मिलती है किसी को मंज़िलें
यूँ ही
बिना मोड़ के
मोड़,पथ्य की नियति
नियति मनुष्य की सोच
और इसी सोच पर
बनता बिगड़ता है
मानव- संकल्प
चाह,इच्छा,अभिलाषा
अनंत तक
और सोच
जड़,स्थिर
फिर कैंसो हो लक्ष्य पूर्ण
जब स्वयं अपूर्ण
हर कदम एक इतिहास
इतिहास,भविष्य का पथ्य
और भविष्य
हमारा अगला कदम
नियति केवल मानव मन की मरीचिका
और नियति का मोड़
उसका प्रतिबिम्ब
सत्य केवल मानव
उसका कदम
उसकी गति ,
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