Thursday, July 24, 2008

गिर गिर के भी अब तुझको.........

गिर गिर के भी अब तुझको सम्हलना है समझले
न हो आज सफल कल तुम्हे होना है समझले
वह पथ ही क्या जिसमें की शूल मिल ही न पाए
हर शूल को इक पुष्प बनाना है समझले

कुछ करने की कुछ बनने की बस मन में तू रख ले
चूमे चरण हर स्वप्न तेरे कर्म तू कर ले
वह राह ही क्या जिसमे मोड मिल ही न पाए
हर मोड को इक राह बनाना है समझले

बनना न दीप अपने को तू सूर्य बनाले
करके सुबह तू अपने संग सबको जगा ले
वह तूफ़ान ही क्या जिसमे मौज़ हिल ही न पाए
हर मौज़ को इक तूफ़ान बनाना है समझले

1 comment:

Anonymous said...

i impresd,read ur poetry gir ..gir..ke bhi.. realy its give a new turn to strugling way of life.....