हो जो शौहरत तो कई क़रीब मिला करते हैं
हो जो शौहरत तो कई क़रीब मिला करते हैं
जफ़ा से होती हैं शुरू अब इबादत इस जहाँ में
हो जो मिल्कियत तो कई हबीब मिला करते हैं
बिके हैं वक्फ़ ज़माने में अब ये आलम हैं
अब तो मदरसों में भी खुले जाम मिला करते हैं
बने वीरान हर चमन पाके नफ़रत को
अब तो हर बाग़ में कांटे ही मिला करते हैं
ख़्वाब दूर हैं निगाहों से सह सितम पे सितम
अब तो हर मुकाम बस ख्यांलो में मिला करते हैं
No comments:
Post a Comment