मेरे अंतश की उड़ान
नये सृजन की
अपने स्वप्न को
पूर्ण करने की
सदा अपने को
अपूर्ण समझने की
मेरे अंतश की उड़ान
प्रण
नवीन सृष्टि का नहीं
सृष्टि में नवीन का
चेतना का
गति का
जो अभी अवचेतन है
जड़ है
यात्रा
अनन्त तक की
किन्तु आदि से
बोध
स्थूलता का
किन्तु सूक्ष्म से
दृढ़
अपनी क्रिया पर
अपने पथ्य पर
उन संवेदनाओ पर
जो मेरे अंतश में
उसकी गहराई में
पैठ कर रही है
परत दर परत
और चाह
विराट की
किन्तु लघुता से
बस यही है
आकांक्षा
और यहीं
मेरे अंतश की उड़ान
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